शिक्षाविदों से परे: समग्र शिक्षा में माता-पिता की भूमिका
नैतिक विकास में माता-पिता की भूमिका
धर्म द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार चलना ही नैतिकता है। नैतिक शिक्षा से देश व समाज का भला होता है। नैतिकता से ही सभी समाज का निर्माण किया जा सकता है। एक बच्चा अपने जीवन में नैतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्य अपने माता-पिता से ही सीखता है। माता-पिता बच्चों को अच्छे-बुरे व सही-गलत का ज्ञान देते हैं क्योंकि इस संसार में माता-पिता ही बच्चों के परम हितैषी होते हैं।
नैतिक शिक्षा को चारित्रिक विकास के रूप में देखते हैं। बच्चे ही देश का भविष्य हैं इसलिए उनका चारित्रिक निर्माण करना माता-पिता के लिए जरूरी है। इसके लिए माता-पिता को स्वयं उनके आदर्श बनना पड़ेगा। बच्चों में नैतिक मूल्यों को विकसित करने के लिए माता-पिता को नैतिक मूल्यों पर आधारित कहानी सुनानी चाहिए। बच्चों की संगति का विशेष ध्यान रखना चाहिए ।
शारीरिक विकास में माता-पिता की भूमिका
बौद्धिक विकास में माता-पिता की भूमिका
बौद्धिक विकास का अर्थ है बच्चे की सोचने, समझने और तर्क करने की क्षमता का विकास। बौद्धिक विकास होने से बच्चा अपने दिमाग और विचारों को व्यवस्थित करना सीख जाता है। बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए माता-पिता को चाहिए कि वे उन्हें संतुलित आहार दें, समय-समय पर उनको निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करें और यदि बच्चे ने गलत निर्णय लिया है तो उसे पुनर्मूल्यांकन करने में उसकी सहायता करें और यदि सही निर्णय लिया हो तो उसकी सरहाना करें। विभिन्न मुद्दों पर उसके साथ चर्चा करें तथा अपना अनुभव समय-समय पर उसके साथ साझा करें।
बच्चों की बौद्धिक विकास हेतु माता-पिता उन्हें ध्यान, योग, प्राणायाम आदि सिखाएं तथा बुद्धि शक्ति वर्धक , मेधाशक्ति वर्धक प्रयोग और त्राटक इत्यादि सुषुप्त शक्तियां जगाने के प्रयोग भी करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करें । संत श्री आशारामजी बापू बच्चों की बौद्धिक विकास के लिए बताते हैं कि प्रतिदिन बच्चों को सूर्य उपासना करनी चाहिए, पाॅंच तुलसी के पत्ते खाकर ऊपर से एक गिलास पानी पीना चाहिए। साथ ही प्रतिदिन सात काजू शहद के साथ चबा-चबाकर खाना चाहिए।
आध्यात्मिक विकास में माता-पिता की भूमिका
- अपने बच्चों को आध्यात्मिक कहानियां सुनाएं।
- घर में समय-समय पर धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन करें।
- दैनिक घटनाओं को आध्यात्मिकता से जोड़े।
- महापुरुषों के जीवन चरित्र सुनाएं।
- बच्चों को योग, ध्यान व प्राणायाम करना सिखाएं।
- गीता- भागवत, रामायण आदि शास्त्रों के अध्ययन की आदत डालें।
- स्वास्थ्य संबंधी जरूरी नियमों की जानकारी दें।
- नियमित सत्संग श्रवण कराएं।
निष्कर्ष:
एक बच्चा अपने माता-पिता के व्यवहार या कार्य को देखकर सीखता है, इसलिए माता-पिता को एक बच्चे के लिए पहला और सबसे महत्वपूर्ण शिक्षक माना जाता है इसलिए बच्चे के समग्र विकास में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। अच्छे और स्वस्थ पालन-पोषण कौशल यह सुनिश्चित करता है कि एक बच्चा स्वस्थ, स्वावलंबी, आत्मविश्वासी और अच्छा इंसान बने। माता-पिता का बच्चों के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए वे ही हैं जो उन्हें प्रेरित करते हैं और आकर्षक व्यक्तित्व बनाने में उनकी सहायता करते हैं।
वर्त्तमान समय में पश्चिमी देशों के अन्धानुकरण के कारण हमारे देश की संताने भी माता पिता और गुरुजनों का तिरस्कार करने वाली बनते जा रही है | इससे होने वाले भयंकर दुष्प्रभावों से मानवता को बचाने के लिए पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने 14 फेब्ररी को मातृ पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाने की परंपरा शुरू की |
आने वाली पीढियां उनके इस पहल की ऋणी रहेगी |