14.02.2024
दिव्य वैलेंटाइन दिवस
सब धर्मों की एक पुकार मात-पिता का करें सत्कारमातृ-पितृ पूजन दिवस क्या है?
प्रौद्योगिकी का गलत उपयोग और पश्चिमी संस्कृति का नकारात्मक प्रभाव समाज को सांस्कृतिक और नैतिक पतन के गर्त में धकेल रहा है। भारत के युवा पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण कर रहे हैं और अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को भूल रहे हैं। वेलेंटाइन डे एक ऐसा खतरा है जो हमारे समाज में घुसपैठ करके युवा पीढ़ी के पतन का कारण तेजी से बन रहा है। इस गिरावट के कारण ही किशोरावस्था में गर्भधारण, वृद्धाश्रम, एकल माता-पिता और अनाथालयों की संख्या में वृद्धि हुई है।
वेलेंटाइन डे के कारण होनेवाले प्रतिकूल प्रभावों और अश्लीलता का प्रतिकार करने और वैदिक संस्कृति के मूल्यों और माता-पिता के सच्चे व पवित्र प्रेम को पुनर्जीवित करने के लिए, दूरदर्शी संत श्री आशारामजी बापू ने वर्ष 2007 में 14 फरवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाने की शुरुआत की।
Matru Pitru Pujan Diwas Gallery
मातृ-पितृ पूजन दिवस कैसे मनायें
माता – पिता का पूजन करते हैं तो काम राम में बदलेगा, अहंकार प्रेम में बदलेगा, माता-पिता के आशीर्वाद से बच्चों का मंगल होगा ।
शिवपुराण में आता है – ‘जो पुत्र माता – पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है । उसे पृथ्वी-परिक्रमाजनित फल अवश्य सुलभ हो जाता है ।’ आओ ! हम भी अपने माता – पिता का पूजन कर के धन्य हो जायें ।
मातृ पितृ पूजन दिवस - आज के युग अनिवार्य आवश्यकता
पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने माता-पिता-बच्चों के रिश्ते को पुनर्जीवित करने, माता-पिता के लिए प्यार और सम्मान को फिर से जगाने के लिए मातृ-पितृ पूजन दिवस की शुरुआत की। यह न केवल उनका आशीर्वाद पाने में मदद करता है बल्कि हमारे भविष्य को आकार देने में भी सहायता करता है।
यह युवाओं को वेलेंटाइन डे जैसी व्यावसायिक गलत प्रथाओं से बचाकर राष्ट्र की रीढ़ को मजबूत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
यह किसी भी सभ्य समाज के लिए कुछ अभिशापों की संभावनाओं को कम करता है, जैसे माता-पिता को वृद्धाश्रम भेजना, किशोरावस्था में गर्भधारण, एसटीडी आदि।
एक विश्वव्यापी अभियान
Our Blog
शिक्षाविदों से परे: समग्र शिक्षा में माता-पिता की
“पक्षी अपने बच्चों को कभी उड़ना नहीं सिखाते, सिर्फ उन्हें उड़ने में काबिल बनाते हैं” ऐसे ही माता-पिता भी अपने बच्चों की समग्र विकास में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
पुंडलिक – जिसने भगवान विष्णु को भी इंतज़ार
“सर्व तीर्थमयी माता सर्व देवमय पिता’’ सर्व तीर्थो का वास माता में एवं सर्व देवों का वास पिता में होता है, अगर हम तीर्थो में न भी जा पायें