पुंडलिक – जिसने भगवान विष्णु को भी इंतज़ार करवाया

“सर्व तीर्थमयी माता सर्व देवमय पिता’’

सर्व तीर्थो का वास माता में एवं सर्व देवों का वास पिता में होता है, अगर हम तीर्थो में न भी जा पायें और देवों की पूजा न भी कर सकें, तो भी माता पिता की सेवा करके उसका फल हम पा सकते हैं | यह बात महापुरुषों और सनातन शास्त्रों द्वारा कही गई है |

रामायण काल में जिस प्रकार श्रवणकुमार अपनी माता-पिता की सेवा से अमर हो गयें , उसी प्रकार महाराष्ट्र की भूमि पर भगवान पांडुरंग के भक्त पुंडलिक ने भी अपने माता-पिता की सेवा करके अपने जीवन को धन्य बनाया है l

माता पिता का महत्व

“अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः।
चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम।”

जो अपने माता-पिता और गुरुजनों का आदर सम्मान व सेवा करता है , उसके जीवन मे आयु,विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है l साथ ही ऐसे सज्जन भगवान के भी इतने प्रिय बन जाते हैं कि भगवान स्वंय उनको देखने चले आते हैं , क्योंकि ऐसे परम भक्त के दर्शन किए बिना ईश्वर से भी नही रहा जाता | यही कारण था कि पुंडलिक की सेवा और शुद्ध भाव देखकर भगवान इतने प्रसन्न हो गए कि कमर पर दोनों हाथ धरे तथा पांव को जो़डकर ईट पर खड़े हो गए l
माता पिता की सेवा करके आप भी अपने जीवन को भक्त पुंडलिक की नाई धन्य और अमर बना सकते हैं l

भक्त पुंडलिक की कथा

पुंडलिक भगवान विष्णु के भक्त थे |

पुंडलिक माता-पिता के प्रति अतुलनीय प्रेम वाली मूरत कैसे बने इसकी एक रोचक और प्रेरणादायी ऐतिहासिक कथा है |

उनकी भक्ति और मातृ-पितृ प्रेम की अद्भुत मिशाल समूचे भारत मे प्रसिद्ध है | जब पुंडलिक एक साधारण व्यक्ति थे तब उनका मन काशी तीर्थ भ्रमण का हुआ, वे काशी तीर्थारटन को निकले,रास्ते मे जंगल से गुज़रते समय वे रास्ता भटक गये | वे जब थोडा आगे बढ़े तो उन्हे एक आश्रम दिखाई दिया l वह आश्रम ऋषि कुक्कुट स्वामीजी का था | वहाँ वे थोडा ठहरे और उन्होंने ऋषि से काशी जाने का मार्ग पूछा | ऋषि ने बताया की वे कभी काशी नही गये और काशी जाने का रास्ता भी उन्हे नहीं पता | इस बात पर पुंडलिक को आश्चर्य हुआ और वे उनकी खिल्ली उड़ाते हुए हंस पड़े और कहा “आप स्वंय को ऋषि कहते हो और एक बार भी काशी नहीं गये !”

उनके आश्रम से निकलते हुए पुंडलिक को स्त्रियों की आवाज़ सुनाई दी | उन्हें वहाँ तीन स्त्रियाँ दिखाई दी, जो आश्रम में साफ-सफाई का कार्य कर रहीं थी, पूछने पर पता चला की वो माँ गंगा, माँ यमुना और माँ सरस्वती हैं , पुंडलिक को बड़ा आश्चर्य हुआ की जो ऋषि काशी नहीं गये, जिन्हें मार्ग तक नही पता उनके आश्रम मे साक्षात देवी माताएं सेवा कर रही हैं !
वो ऐसा सोच ही रहे थे कि देवी गंगा जी ने कहा, “ जिसके मन में पवित्रता, अंतःकरण में शुद्धता और आदर भाव है , उसे तीर्थ स्थान जाने की या कर्मकांड करने की कोई आवश्यकता नही है | कुक्कुट ऋषि ने अपने जीवन में पवित्र मन से अपने माता पिता और गुरूजी की सेवा की है, एक ही दिशा मे अपना जीवन समर्पित किया है और इसलिए उन्हे मोक्ष की योग्यता प्राप्त हुई है |

पुंडलिक अपने माता-पिता के आग्रह करने पर भी वो उन्हे छोड़कर अकेले ही काशी तीर्थ जा रहे थे | इस घटना से उसकी आखें खुली l इसके बाद उनका जीवन परिवर्तन हुआ | फिर माता- पिता की सेवा में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन न्योछावर कर दिया | वो दिन रात माता-पिता की सेवा मे लीन रहने लगे l भगवान श्रीकृष्ण को भी पुंडलिक के दर्शन बिना रहा नही गया | पुंडलिक के मातृ- पितृ की भक्ति से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान पांडुरंग उनके द्वार पर आयें l उस समय पुंडलिकअपने माता पिता की सेवा में लगे थेl उन्होंने भगवान से आग्रह किया कि सेवा पूरी करने के बाद मिलता हूं l ऐसा कहकर भगवान को बैठने के आसान के रूप में एक ईंट सरका दिया कि आप तब तक इंतजार करिए, जब तक मेरी सेवा पूर्ण नही हो जाती |
ऐसे भक्त के लिए तो भगवान भी इंतजार करने को तैयार हो जाते हैंl
जब उनकी सेवा पूर्ण हुई तब उन्होंने कृष्ण भगवान से क्षमा मांगी कि सेवारत होने के कारण उन्हे इंतजार करवाया |

किंतु भगवान प्रसन्न होते हैं और पूछते हैं कि क्या आशीर्वाद चाहिए ?
प्रसन्नवदन पुंडलिक, भगवान को हमेशा के लिए पृथ्वी लोक पर वास करने की प्रार्थना करने लगे l
तभी से भगवान आज भी उसी ईंट पर ज्यो के त्यो विराजमान हैं |
उस मातृ- पितृ भक्त परायण पुण्डलिक के कहने पर जब भगवान हमेशा के लिए वहाँ स्थाई हो सकते हैं, तो हम अपने माता पिता की सेवा करके क्या भगवान के हृदय को प्रसन्न नहीं कर सकते हैं ?

वर्तमान परिस्थिति

यह बड़े खेद कि बात है कि आज की युवा पीढ़ी बाहरी आकर्षण में फँसकर गंदे चलचित्र देखकर अपने विचार भी वैसे ही बना लेती है और माता- पिता के उपकारों को भूल जाती है |जो माँ हमें नौ महीने कोख में रखती है, फिर जन्म देने का दुःख सहन करती है, पिता अपने शारीरिक कष्ट सहन करके भी अपने संतान के लिए आर्थिक जमा पूंजी से पढ़ा लिखा कर एक सक्षम इंसान बनाते हैं, उनका ये कर्ज़ आज की युवा पीढ़ी भुलाते जा रही है l कितने कष्ट से माता पिता हमें एक इंसान बनाते हैं और जब हम पढ़ लिखकर बड़े बन जाते हैं , तो माता पिता का तिरस्कार , अपमान करते हैं , उन्हे अपशब्द कहते हैं l कई मनचले तो ऐसे कार्य भी कर लेते हैं , जिसकी वजह से माता पिता की आखों मे आँसू आ जाता है l फिर भी माता पिता यह सब भूलकर भी आशीर्वाद देने को तत्पर रहते है|

मातृ-पितृ पूजन दिवस

पूज्य संत श्री आशारामजी बापू की पावन प्रेरणा से ऐसे उदार माता पिता और गुरुजनों से प्यार भरा आशीर्वाद पाने और प्रेम छलकाने वाला पवित्र प्रेम दिवस हमारे समाज में आज 14 फ़रवरी को मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप मे मनाया जा रहा है | आज के इस कलियुग में भी जब बच्चे और युवा जब इस पवित्र दिवस पर माता पिता का पूजन करते हैं तो ऐसा लगता है कि हजारों पुंडलिक प्रगट हो गए हैं |

सच्चा प्रेम, पवित्र प्रेम , निस्वार्थ प्रेम सिर्फ़ और सिर्फ़ माता-पिता ही अपने बच्चों को दे सकते हैं | आज सम्पूर्ण समाज, राष्ट्र और विश्व को इस पवित्र दिन की आवश्यकता है, ताकि सम्पूर्ण विश्व फिर से एक बार स्वर्ग सा नंदनवन बन जाए| क्योंकि निःस्वार्थ प्रेम मतलब है “माता-पिता”|

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